Wednesday, July 25, 2018

भाजपा की आम आदमी के मन में बसी छवि धूमिल हो गई है

भारतीय संस्कृति और सभ्यता की रक्षक के रूप में उदीयमान हुए दल भाजपा की वर्तमान शैली अब मात्र सत्ता सुख की परिचायक नजर आ रही है. किसी ज़माने में दो की एकल संख्या से आज सैकड़े में पहुँचने वाली इस पार्टी का जो अभियान, जोश बुलंदी पर था, वह अब निश्चय ही निम्न से निम्नतर की ओर जा रहा है. भाजपा को लगातार मिलती उपेक्षा से ऐसा लगता है कि भाजपा ने अपनी छवि को एकदम पाक साफ़ रखा था. राजनीति के अपराधीकरण होने का एक लम्बा विरोध सर्वप्रथम भाजपा की ओर से किया गया था और उसकी छवि सारे भारत में न सही पर उत्तर क्षेत्र में निश्चित ही प्रखर होकर उभरी थी. बाबरी कांड ने अन्य दलों के बीच भाजपा की छवि को दागदार किया. मुसलमानों के अन्दर व कुछ प्रबुद्ध हिन्दुओं को भी इस कदम से आघात लगा. 

फ़िलहाल यह बीते कल की बात है और एक बहस का विषय है कि क्या सही था और क्या गलत? पर आज के माहौल में जिस तरह की राजनीति अन्य राजनीतिक दल कर रहे थे, उसे देखकर आने वाले समय में भाजपा को ही सिरमौर माना जा रहा था. हर वो भारतीय जो कि एक पार्टी विशेष में अपना हित न देखकर उस मामले को ही सही सही समझता है, जिसमें देश का हित हो तो यकीनी तौर पर लोगों की पसंद भाजपा ही थी. आखिर भारतीय स्तर पर जानी जाने वाली पार्टी कांग्रेस की स्थिति एक मौकापरस्त की बन चुकी है. ठीक ऐसी ही स्थिति अन्य पार्टियों की है. जद हो या सपा या बसपा, ये किसी भी रूप में राष्ट्रीय स्तर पर देश की सत्ता संभालने लायक नहीं समझी जा सकी हैं. यही कारण है कि आने वाले समय की एकमात्र पार्टी भाजपा को ही माना गया था न कि किसी अन्य को. पर हाल की घटनाओं से लगता है कि भाजपा भी कांग्रेस या अन्य पार्टियों की राह पर जा रही है. 

उ०प्र०की घटना ने वाकई सभी का विश्वास तोड़ कर रख दिया है. यह एक कटु सत्य है कि आज के समय में की जाने वाली राजनीति में सिद्धांतों और आदर्शों की कोई जगह नहीं है. सभी को ताक पर रखकर ही राजनीति की जा रही है. एक परिवार की गुहार लगाई जा रही है तो एक पार्टी से लगातार प्रधानमंत्री बदल रहे हैं. भारतीयता के नाम पर देश के आम आदमी में जीवित आदर्शों और सिद्धांतों ने भाजपा के रूप में अपने आपको देखना शुरू कर दिया था, पर अब लगता है कि आम आदमी के मन में बसी छवि धूमिल हो गयी है. यह बात अलग है कि समय की माँग पर भाजपा ही खरी उतरती है पर किसी भी तरह की सत्तालोलुपता या अपराधीकरण उसके मंत्रिमंडल को तो बढ़ा सकता है, पर जनाधार को अवश्य ही कम करेगा. भाजपा को इस ओर भी सोचना होगा, कुछ करना होगा.

16 दिसम्बर 1997 अमर उजाला समाचार पत्र