Friday, January 11, 2019

पाक को मुँहतोड़ जवाब देने को दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए


पिछले दिनों अमेरिका द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने वाले कतिपय देशों के खिलाफ बमबारी की गई. समूचे विश्व में इस तानाशाहात्मक रवैये का विरोध किया गया. भारत ने बड़े ऊँचे सुर में इस कार्यवाही का समर्थन किया कि वह आतंकवाद के विरुद्ध की गई कार्यवाहियों का समर्थन करता है. इसके बाद ही जब अमेरिका ने सलाह दी कि भारत ऐसी कार्यवाही कश्मीर में न करे तो सभी को आपत्ति होने लगी कि आखिर जब इस प्रकार की कार्यवाही अमेरिका कर सकता है तो फिर भारत क्यों नहीं? लोगों ने कहा कि अमेरिका दादागीरी पर उतर आया है, पर यहाँ सवाल इस बात का विरोध करने वालों से है कि दादागीरी बिना हौसले के संभव है? किसी भी प्रकार की युद्धात्मक कार्यवाही क्या बिना आत्मशक्ति के संभव है? शायद नहीं, यदि भारत को इस तरह की कार्यवाही कश्मीर पर करनी है तो उसके लिए खुद के पास पुरजोर इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है और शायद हम कहीं पर कमजोर हैं तो बस यहीं पर.

जब से देश आज़ाद हुआ है तब से लेकर आज तक पाकिस्तान ने सिवाय हमें परेशान करने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखी है. कश्मीर का एक हिस्सा दबाकर यह उसे आज़ाद कश्मीर का नाम देता है. क्या-क्या उसने नहीं किया पर हम हर समय शांति के कबूतर उड़ाते रहे. गाँधी का अहिंसात्मक रवैया अपनाते रहे और मात्र बातों ही के सहारे विजय प्राप्त करने की सोचते रहे. क्यों नहीं हम स्वयं में इतनी शक्ति बटोर पाए कि कश्मीर में हो रही पाकिस्तानी कार्यवाही का मुँहतोड़ जवाब दे सकें. इसका एकमात्र कारण रहा हमारे नेताओं का आपस में एकमत न हो पाना. सभी ने अपनी-अपनी इच्छानुसार काम किया, बयानबाज़ी की. सभी ने अपनी ढपली, अपना राग अलापा है. ऐसे में जबकि देश से बढ़कर वोट बैंक हो वहां अमेरिकी कार्यवाही तो तानाशाही का नमूना लगेगी ही, पर यदि वाकई देश के लिए कुछ करना है तो प्रत्येक कार्य सर्वोपरि होता है. चाहे उसकी कार्यवाही कुछ भी क्यों न हो, पर इन सबके लिए चाहिए आत्मशक्ति जो कि हमारे अन्दर से मर चुकी है.

16 सितम्बर 1998  

मौजूदा हालात देश को गृहयुद्ध की ओर धकेल रहे हैं

जिस तरह की स्थितियाँ देश में, प्रदेश में बन रही हैं वे सारी की सारी किसी न किसी रूप में गृहयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार कर रही हैं. विदेशों में हुई क्रांतियाँ इस तरह के सामाजिक वातावरण के बाद ही उत्पन्न हुई थी, जैसी कि स्थितियाँ भारतीय समाज में बन-बिगड़ रही हैं. यह बात अलग है कि सुसुप्तावस्था में भारतीयों को इस कार्य के लिए जागने पर दस-बारह साल बीत जाएँ लेकिन यह एक बात एकदम सत्य है कि गृहयुद्ध होगा ही. नहीं भी हो पर यह समय की माँग भी है क्योंकि जिस तरह से जाति भेदभाव, आपसी वैमनष्यता, दलगत राजनीति व स्वार्थी नेता पैदा हो रहे हैं उससे छुटकारा अब सिर्फ गृह युद्ध ही दिला सकता है.

जब जिसकी मर्जी आती है, किसी भी दल की ओर हो जाता है, जब मन होता है समर्थन वापस, जब मन हुआ प्रधानमंत्री तक बदलवा दिया. राजनीतिक अस्थिरता में देश का विकास तो रुकता ही है, आम आदमी को तरह-तरह की समस्याओं को सहना पड़ता है. नेताओं की आपसी कुर्सी की जंग में आम आदमी मर रहा है. हिन्दू हिन्दू का दुश्मन, मुस्लिम मुस्लिम का, कहीं सवर्ण-अवर्ण का युद्ध तो कहीं मंदिर मस्जिद का विवाद. ये सारी स्थितियाँ व्यक्ति की सोच को एकदम से सुसुप्त कर दे रही हैं. एक नेता स्वयं को श्रेष्ठ, दूसरे को बेकार बता रहा है. कभी मायावती मुलायम को गाली देती है तो कभी मुलायम मायावती को, तो कभी दोनों ही एक होते दिखते हैं. सभी के सभी आम आदमी की भावना, संविधान की लचरता का लाभ उठाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं. आम आदमी के बीच जात-पात की रेखा खींच कर ज नफ़रत दिलों में भर दी गई है वो किसी न किसी दिन खुनी फव्वारे छोड़ती दिखाई देगी.

सभी के सब्र की एक सीमा है और उसके बाद का क्षेत्र विद्रोह का क्षेत्र होता है. यदि दलगत, मौकापरस्ती, जातिगत राजनीति का होना जारी रहा, व्यक्ति को मात्र भुनगा समझा जाता रहा तो वह दिन दूर नहीं जबकि देश में गृहयुद्ध होगा और हम अपनों की लाशों से घिरे खड़े होंगे.

02 मार्च 1998 अमर उजाला समाचार पत्र