Monday, June 4, 2018

दुखती रग को छूकर दी जाने वाली यह कैसी श्रद्धांजलि है?

ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ की भारत यात्रा का क्या मकसद है, यह किसी ने ज़ाहिर नहीं किया परन्तु जलियांवाला बाग़ की यात्रा करना अवश्य उनकी मानसिकता को उजागर करता है. आख़िरकार जिस देश ने कभी हम पर शासन किया हो और शासन ख़तम हुए भी महज 50 वर्ष बीते हैं, तो कहीं न कहीं महारानी के मन में अहं की भावना आती होगी. फिर ऐन स्वर्ण जयंती उत्सव पर उनकी यह यात्रा इसी मनोवृत्ति का द्योतक है. यदि महारानी भारत आना चाहती हैं तो अमृतसर जाने का क्या औचित्य और फिर अमृतसर जाना भी है क्या जरूरी है कि जलियांवाला बाग़ की ओर रुख किया जाये? आखिर इस स्थान के साथ हम भारतीयों की दुखद यादें जुड़ी हुई हैं, महारानी वहां क्रूर काल का शिकार हुए लोगों को श्रद्धांजलि देना चाहती हैं. समझ नहीं आया कि यह कैसा प्रायश्चित, कैसी श्रद्धांजलि है जो कि हमारी दुखती रग को छूकर दी जा रही है? और फिर यदि किसी तरह का प्रायश्चित करना ही है तो क्या मात्र इस बाग़ के साथ ही अंग्रेज सैनिकों की बर्बरता की दास्तान जुड़ी है? ऐसा तो नहीं है, भारत देश की हर गली, हर गाँव में किसी न किसी पैमाने पर अंग्रेजी हुकूमत के ज़ुल्मो-सितम की छाप मौजूद है. तो फिर महारानी का इस बाग़ के शहीदों को ही याद करने का क्या औचित्य है?

आज 50 वर्ष बीत जाने के बाद भी न तो किसी प्रायश्चित का प्रभाव पड़ना है और न ही माफ़ी मांगने का कोई महत्त्व है. फिर भी यदि महारानी को वाकई प्रायश्चित या श्रद्धांजलि का मन हो रहा है तो यकीनन हम भारतवासियों की बात मानकर इस घटना के लिए क्षमा मांगनी चाहिए. आज महारानी और उसके खानदान को इस बात का सुकून मिलना चाहिए कि अंग्रेजी शासन की वर्षों की बर्बरता को महज एक जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की घटना में परिणत कर क्षमा मांगने की अपील की गई है. स्वयं महारानी को और हमारे देश के दो जुबान वाले प्रधानमंत्री को इस बात पर विचार करना चाहिए. वैसे भी क्षमा मांगने से महारानी की शान में बट्टा नहीं लग रहा है और न ही हमारे शहीद भाई-बंधु वापस जीवित हो रहे हैं. यह महज औपचारिकता ही है जो कि हमारी आज़ादी की स्वर्ण जयंती पर महारानी की ओर से की जा रही श्रद्धांजलियों में सर्वोत्तम होगी. प्रधानमंत्री गुजराल कभी महारानी को अमृतसर न जाने को कहते हैं, अगले ही दिन सारे भारत की यात्रा की छूट दे देते हैं. यदि हमारी दुखती रगों को दुखाना ही महारानी की यात्रा का सबब है तो प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए, अन्यथा हम स्वतंत्र होकर भी अंग्रेजों की मानसिक बर्बरता का शिकार हो जायेंगे.

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11 सितम्बर 1997 – अमर उजाला समाचार पत्र

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