Tuesday, July 21, 2020

मीडिया धन नहीं, देश प्रेमी खिलाड़ियों की मदद करे


यदि आपसे पूछा जाये कि देश बड़ा या पैसा तो संभव है कि शेखी मारने के लिए आप देश को बड़ा कर दें. वैसे कुछ लोग अभी भी ऐसे हैं जो कि वाकई देश प्रेमी हैं और कुछ ऐसे हैं जो वाकई धन प्रेमी हैं. लेकिन जब कभी स्थिति ऐसी फँस जाए कि देश बंधन के बीच की ही स्थिति आ जाये तो शायद कुछ भी कहना संभव नहीं. ठीक ऐसी ही स्थिति अभी हमारे समक्ष आई और तब देखा गया कि धन वाकई देश से ज्यादा महत्त्व रखता है. राष्ट्रकुल खेलों का आयोजन व क्रिकेट का खेल तथा सहारा कप. स्थिति ऐसी थी कि एक ओर पदक का, देश का सवाल, दूसरी ओर अकूत धन. बोर्ड के सामने स्थिति ख़राब कि कहाँ किसे भेजें. बहरहाल अजय जड़ेजा के नेतृत्व में टीम राष्ट्रकुल भेजी गई. आज के डॉन ब्रेडमैन माने जा रहे तेंदुलकर भी भेजे गए, फिरकी गेंदबाज कुम्बले भी संग गए. सारे देश ने सोचा कि सचिन हैं तो मैच तो जीता ही समझो पर सचिन या अन्य खिलाड़ियों की निगाह में शायद देश पीछे था क्योंकि मैच ऐसी हालत में नहीं खेले गए कि लगे कि पदक जीतना है क्योंकि सेमीफाइनल में न पहुँच पाने का पुरस्कार सहारा कप के दो मैच खेलने को मिला था.


आज तक भारतीय जीत के हीरो समझे जाने वाले सचिन दोयम दर्जे की टीमों के सामने घुटने टेकने में लगे थे, क्योंकि न तो इन मैचों का कोई रिकॉर्ड ही रखा गया था और न ही यहाँ पर पैसों और इनाम की भरमार थी. और तो और शायद अब समूचे देशवासियों और पूरी टीम का यह मिथक टूट जाना चाहिए कि सचिन अकेले के दम पर मैच जीते जाते हैं. अगर ऐसा होता तो राष्ट्रकुल खेलों का स्वर्ण हमारे पास होता पर ऐसा न होता आया है और न ही हुआ. नज़रों में हमने जिसे चढ़ाया वो धन का पुजारी निकला. पाँचवें और अंतिम सहारा मैच में सचिन ने अर्द्धशतक बनाया क्योंकि यह एक अंतर्राष्ट्रीय मैच था. वहीं दूसरी ओर एक व्यक्ति जसपाल राणा जो कि देश के लिए पदकों का ढेर लगा रहा है आज धन के अभाव में आस्ट्रेलिया में जाने की सोच रहा है. सरकार, समाज आदि किसी कोहकीकत दिखाई नहीं पड़ रही है. एक व्यक्ति जो कि स्वयं को एक उत्पाद के रूप में प्रचारित कर पैसा पैदा करने में लगा है, राष्ट्र के लिए एक पदक न दिलवा सकने की भी ताकत जो पैदा न कर सके वे हमारे सिर आँखों पर हैं. जो व्यक्ति वाकई देश का नाम रोशन करने के लिए लगा है उसे एक व्यक्ति नहीं मिल रहा जो कि उसे आर्थिक व मानसिक मदद, प्रोत्साहन दे सके.

यदि इसके लिए व्यक्ति जिम्मेवार है तो कहीं न कहीं मीडिया भी कसूरवार है क्योंकि क्रिकेट की चकाचौंध में सभी खेलों को दबा दिया गया है. वर्तमान आँकड़ों ने सभी क्रिकेटरों की कलई खोल दी है जो कि सिवाय अपने रिकॉर्ड के अलावा, धन के अलावा किसी और के लिए नहीं खेलते. मीडिया यदि सही रूप में हकीकत को प्रचार-प्रसार दे तो संभव है कि एक उज्ज्वल प्रतिभाशाली खिलाड़ी पलायन न करे और आगामी प्रतियोगिताओं में देश के लिए पदक तालिका में कुछ वृद्धि करे. मीडिया ऐसे लोगों की मदद को आगे आये जो वाकई देश प्रेमी हैं न कि धन प्रेमी, अन्यथा आगे की राह बड़ी ही प्रतिष्ठाविहीन है.

21 अक्टूबर 1998 

No comments:

Post a Comment