Tuesday, March 6, 2018

राष्ट्रपति का चुनाव आम सहमति से नहीं चुनाव द्वारा हो

देश की मौजूदा स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि सभी दल एक अज्ञात भय से सशंकित हैं। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, जद हो या सपा, सभी को भय चुनाव का है। इस समय देश में भले ही केन्द्र सरकार के लिए चुनाव नहीं होने हैं पर आगामी माह भारत के प्रथम नागरिक का चयन होने को है। यह बात तो तय है कि जिस प्रत्याशी को तेरह दलों का समर्थन मिलेगा, वही विजयी होगा। या फिर भाजपा जिस व्यक्ति को समर्थन देगी वह पराजित हो जायेगा। इस सारे समीकरण के बावजूद सभी दल राष्ट्रपति का चुनाव न करवाकर आम सहमति की बात कर रहे हैं। आखिर यह आम सहमति क्या है और क्यों है? क्या आज लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया एकदम खस्ताहाल हो गई है? या फिर हम अपनी प्रणाली, अपनी व्यवस्था को त्याग कर आम सहमति जैसे रास्तों का चयन कर रहे हैं? सोचने की बात यही है कि क्या आम सहमति से एकदम सही व उपयुक्त प्रत्याशी का चयन हो सकता है? आज सभी दलों को एक ही राजनीति दिख रही है, दलितों और अल्पसंख्यकों की। भाजपा को छोड़कर सभी खुलेआम के० आर० नारायणन को राष्ट्रपति बनाने की कोशिश में हैं, फिर चुनावी प्रक्रिया से डर क्यों? आखिर जो प्रणाली बनाई गई है उसका वहन तो करना ही चाहिए, पर जो डर आज पार्टियों के अन्दर समा गया है वह निकालना अत्यावश्यक है। जहाँ एक ओर पार्टी के संगठनात्मक चुनाव हो रहे हैं, वहां ऐसी बातें जो कि आम सहमति की राह पर हैं, कतई लोकतंत्र की राह नहीं है। कांग्रेस ने अपने मरते लोकतंत्र को चुनाव करवाकर जिला लिया है। जद भी दो शीर्षस्थ नेताओं की तू-तू, मैं-मैं में अपने लोकतंत्र को ढूंढ रहा है। ये पार्टियाँ अपने नेता को चुनने के लिए आम सहमति क्यों नहीं जुटा पा रहे हैं? ये सभी देश की सर्वोच्च कुर्सी पर बैठने वाले के प्रति आम सहमति क्यों दिखा रहे हैं? क्या आम सहमति से आने वाला राष्ट्रपति स्वतंत्र निर्णय ले सकेगा? वैसे भी हमारे देश का राष्ट्रपति प्रधानमंत्री का रबर स्टैम्प मात्र है। ऐसे में चाहे आम सहमति की बात हो या चुनाव की बात, कोई फर्क नहीं पड़ता है, पर फिर भी ऐसे व्यक्ति का चुनाव जो कि देश का प्रथम नागरिक हो, किसी मजबूरी जैसी आम सहमति से नहीं बल्कि चुनावी प्रक्रिया द्वारा होना चाहिए। शायद कुछ अलग परिणाम सामने आयें, पर सभी दलों को अपना आंतरिक भय दूर करना होगा जो कि उनके बयानों से झलकता है।
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25 जून 1997 - अमर उजाला समाचार पत्र

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